एक समय ऋषि कश्यप के दो पुत्र, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप, अपनी असाधारण शक्तियों और अभिमान के कारण पूरे संसार में विख्यात थे। हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति के मद में भूदेवी का अपहरण कर लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण करके उसका अंत किया। इसके बाद उसका भाई हिरण्यकश्यप बदला लेने के लिए व्याकुल हो गया।
अहंकार और तपस्या
हिरण्यकश्यप ने सोचा कि अगर उसे भगवान विष्णु को हराना है, तो उसे अमरत्व का वरदान चाहिए। वह वन में जाकर कठोर तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या इतनी शक्तिशाली थी कि स्वर्गलोक भी असहनीय गर्मी से भर गया। देवताओं की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए।
जब हिरण्यकश्यप ने अमरत्व का वरदान मांगा, तो ब्रह्मा जी ने मना कर दिया क्योंकि यह सृष्टि के नियमों के विरुद्ध था। तब हिरण्यकश्यप ने अत्यंत चतुराई से शर्तें रखीं, कि उसकी मृत्यु न किसी मनुष्य के हाथों हो, न जानवर के; न दिन में, न रात में; न घर के भीतर, न बाहर; न आकाश में, न पृथ्वी पर; और न किसी अस्त्र-शस्त्र से। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर वरदान दिया।
हिरण्यकश्यप का अत्याचार और प्रह्लाद की भक्ति
वरदान पाकर हिरण्यकश्यप ने देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार शुरू कर दिया। लेकिन उसका पुत्र, प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। जब प्रह्लाद ने अपने पिता की अधर्मपूर्ण बातों का विरोध किया, तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए।
प्रह्लाद को जहर दिया गया, समुद्र में फेंका गया, और जंगली हाथियों से कुचला गया। लेकिन हर बार वह भगवान विष्णु की कृपा से बच गया।
होलिका दहन और भक्त प्रह्लाद की विजय
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका, जिसे अग्नि से सुरक्षित रहने का वरदान था, उससे प्रह्लाद को जलाने का आग्रह किया। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से सुरक्षित रहा, और होलिका खुद जलकर राख हो गई।
नरसिंह अवतार: अधर्म पर धर्म की विजय
एक दिन हिरण्यकश्यप ने क्रोध में प्रह्लाद से पूछा, "क्या तुम्हारा भगवान हर जगह है?"
प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "हाँ, पिताश्री। भगवान हर जगह हैं।"
हिरण्यकश्यप ने स्तंभ पर प्रहार किया, और अचानक स्तंभ से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए, आधे मनुष्य और आधे सिंह के रूप में। उन्होंने संध्या के समय, महल की चौखट पर, न अस्त्र से न शस्त्र से, अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया।
भक्ति का संदेश
भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया और उसे सच्चे धर्म का पालन करते हुए प्रजा की सेवा करने को कहा।
कथा से सीख
- अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
- सच्ची भक्ति और विश्वास के बल पर हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।
- जीवन का उद्देश्य आत्मिक उन्नति है, भौतिक सुख नहीं।
जीवन का सत्य
"मनुष्य का हृदय स्वच्छ और करुणा से भरा होना चाहिए। जब हमारा अंतःकरण निर्मल होगा, तभी ईश्वर का प्रकाश हमारे जीवन में दिखाई देगा। शाकाहार अपनाइए, परोपकारी बनिए, और हर प्राणी से प्रेम करिए। यही ईश्वर की सच्ची आराधना है।"
भगवान श्री नरसिंह जी की महिमा और प्रेरणादायक कथा
श्री नरसिंह जी की कथा हमें सिखाती है कि भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। हिरणाकश्यप के अहंकार और अत्याचारों से त्रस्त होकर, भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण किया और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की। यह कथा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में प्रेरणा देने वाली है।
कथा का सार
संसार में सत्य, प्रेम, और भक्ति की विजय निश्चित है। जब-जब अधर्म और अन्याय बढ़ता है, ईश्वर अपने भक्तों के कल्याण के लिए अवतार लेते हैं।
हिरणाकश्यप ने अपनी शक्ति के मद में धर्म का रास्ता छोड़ दिया और अपने ही पुत्र प्रहलाद पर अत्याचार किया। प्रहलाद ने विष्णु भक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची श्रद्धा हर संकट से बचाती है।
नरसिंह जी का अवतार और संदेश
- भक्त की रक्षा: भगवान नरसिंह ने यह सिद्ध किया कि सच्चे भक्त की रक्षा के लिए वह हर सीमा को पार कर सकते हैं।
- अहंकार का अंत: हिरणाकश्यप का अंत यह संदेश देता है कि अहंकार और अधर्म का नाश निश्चित है।
- भक्ति की शक्ति: प्रहलाद की विष्णु भक्ति ने असंभव को संभव कर दिखाया।
प्रेरणा भरी बातें
जीवन का सत्य:
"आत्मिक कल्याण भौतिक सुख से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।"
इसलिए, ईश्वर को अपने हृदय में स्थान दें और भक्ति के मार्ग पर चलें।
शुद्ध अंतःकरण का महत्व:
"जैसे गंदे दर्पण में सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता, वैसे ही मलिन मन में ईश्वर का वास नहीं होता।"
स्वच्छ और करुणामय हृदय से ही दिव्य दृष्टि पाई जा सकती है।
परोपकार और करुणा:
"प्रभु हर जीव में चेतना के रूप में विद्यमान हैं।"
जीवों से प्रेम करें, शाकाहार अपनाएं, और करुणा का मार्ग चुनें।
नरसिंह जी से सीखने योग्य बातें
- सत्य और धर्म की रक्षा के लिए साहस दिखाना।
- अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान पर अटूट विश्वास रखना।
- दूसरों की भलाई के लिए अपने स्वार्थ को त्यागना।
श्री नरसिंह जी की कथा हमें सिखाती है कि सत्य और भक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं।
"प्रभु हर जीव में वास करते हैं, इसलिए दूसरों के प्रति प्रेम और सेवा का भाव रखें।"
प्रश्न-उत्तर: भगवान नरसिंह की कथा पर प्रश्नोतरी
प्रश्न 1: हिरण्यकश्यप ने अमर होने के लिए कौन-सा उपाय अपनाया था?
उत्तर: हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि वह न मनुष्य के हाथों मरे, न जानवर के; न दिन में, न रात में; न घर के भीतर, न बाहर; न आकाश में, न पृथ्वी पर; और न किसी अस्त्र-शस्त्र से।
प्रश्न 2: हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त क्यों बने?
उत्तर: महर्षि नारद ने प्रह्लाद की माता कयाधू को भगवान विष्णु की कथाएँ सुनाई थीं। गर्भ में ही प्रह्लाद पर इन कथाओं का प्रभाव पड़ा, जिससे वह भगवान विष्णु के परम भक्त बन गए।
प्रश्न 3: हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कौन-कौन से प्रयास किए?
उत्तर: हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जहर दिया, समुद्र में फेंकवाया, जंगली हाथियों से कुचलवाने का प्रयास किया, और अपनी बहन होलिका से अग्नि में जलाने को कहा। लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए।
प्रश्न 4: होलिका कैसे मारी गई?
उत्तर: होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुँचा सकती। लेकिन जब वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी, तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर राख हो गई।
प्रश्न 5: नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कैसे किया?
उत्तर: भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में प्रकट हुए, जो आधा मनुष्य और आधा सिंह का रूप था, संध्या के समय महल की चौखट पर हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार दिया। यह न अस्त्र था, न शस्त्र; न उस समय दिन था, न रात; न घर के भीतर, न बाहर।
प्रश्न 6: इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
- अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
- सच्ची भक्ति और विश्वास कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रक्षा करता है।
- आत्मिक उन्नति भौतिक सुख से अधिक महत्वपूर्ण है।
- ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं।
प्रश्न 7: नरसिंह अवतार के प्रकट होने पर प्रह्लाद ने क्या कहा?
उत्तर: प्रह्लाद ने नरसिंह भगवान से कहा, "प्रभु, मैं जानता था कि आप मेरी रक्षा के लिए आएंगे।"
प्रश्न 8: भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को क्या आशीर्वाद दिया?
उत्तर: भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया कि वह अपनी प्रजा की सेवा करे और धर्मपूर्वक शासन करके अंत में वैकुंठ लोक को प्राप्त करे।
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