9 दिसंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में महिला सैन्य अधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल को स्थायी कमीशन प्रदान किया। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की शक्तियों का उपयोग करते हुए दिया गया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि महिलाओं को सशस्त्र बलों में समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों।
पृष्ठभूमि: भेदभाव का मामला
2008 में आर्मी डेंटल कोर में कमीशन प्राप्त करने वाली इस महिला अधिकारी को अन्य अधिकारियों की तरह स्थायी कमीशन के लिए आवेदन करने का तीसरा मौका नहीं दिया गया। हालांकि, समान परिस्थितियों वाले अन्य अधिकारियों को आयु में छूट और आवेदन का अवसर मिला। यह भेदभावपूर्ण व्यवहार था जिसे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने उचित ठहराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एएफटी के फैसले को पलटते हुए कहा कि यह अधिकारी को अनुचित रूप से उनके अधिकारों से वंचित करने जैसा था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समान परिस्थितियों में सभी अधिकारियों को समान लाभ मिलना चाहिए।
न्यायालय की टिप्पणी और कानूनी मिसालें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी अन्य अधिकारी को आयु में छूट जैसे लाभ मिल सकते हैं, तो अपीलकर्ता को भी वह लाभ मिलना चाहिए। अदालत ने अमृत लाल बेरी बनाम कलेक्टर ऑफ सेंट्रल एक्साइज और केआई शेफर्ड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया जैसे मामलों का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि सरकारी नीतियों से प्रभावित नागरिकों को उनके अधिकार बिना मुकदमेबाजी के दिए जाने चाहिए।
सशस्त्र बलों में महिलाओं के लिए भविष्य का रास्ता
यह फैसला भारतीय सेना में महिलाओं को समान अवसर और स्थायी कमीशन देने के लिए एक बड़ा कदम है। फरवरी 2024 में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया था।
10 दिसंबर, 2024 को कोर्ट ने इस फैसले को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को एक महीने का समय दिया और जोर देकर कहा कि इन आदेशों को समय पर लागू किया जाए।
यह ऐतिहासिक निर्णय केवल एक महिला अधिकारी के अधिकारों की रक्षा नहीं करता, बल्कि सशस्त्र बलों में महिलाओं को समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारतीय न्यायपालिका की उन महिलाओं के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो लिंग आधारित भेदभाव से लड़ रही हैं।
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