सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय सुनाया है, जिसमें जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता के भरण-पोषण और देखभाल में असफल होता है, तो माता-पिता के लिए बनाए गए कानून, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत वह अपनी संपत्ति और दिए गए उपहारों को वापस करने के लिए बाध्य हो सकते हैं।
यह निर्णय एक महिला के मामले में आया, जिन्होंने 2019 में अपने बेटे को अपनी संपत्ति गिफ्ट डीड के जरिए इस शर्त पर दी थी कि वह उनकी और उनके पति की देखभाल करेगा। लेकिन जब बेटे ने अपनी मां के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू किया, तो महिला ने 24 दिसंबर 2020 को इस मुद्दे को अधिनियम की धारा 22 और 23 के तहत छतरपुर के उपमंडल मजिस्ट्रेट के पास आवेदन दायर किया।
कानून के तहत, अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता की देखभाल में विफल रहता है, तो यह परिवार और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने वाले कानून के तहत माना जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले में महिला की याचिका को स्वीकार किया और यह निर्णय दिया कि ऐसे मामलों में बच्चों को उनकी संपत्ति लौटा देने का आदेश दिया जा सकता है।
यह फैसला यह भी दिखाता है कि भारतीय न्यायपालिका ने परिवार के अंदर रिश्तों की मजबूती और जिम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लिया है। साथ ही, यह माता-पिता के अधिकारों और उनके सम्मान की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह निर्णय उन बच्चों के लिए एक कड़ा संदेश है, जो अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करते हैं। अब, माता-पिता का सम्मान और देखभाल करने का कर्तव्य निभाना न केवल परिवार की जिम्मेदारी है, बल्कि कानूनी दायित्व भी बन चुका है।
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