13 अप्रैल, 1919 वैशाखी का दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में विशाल सभा का ओयजन हुआ। पंजाब के गर्वनर माइकेल ओडवायर के आदेश से 150 सैनिकों द्वारा वहाँ गोली चलाकर लगभग 1200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था और 1500 लोग घायल हो गए। ऊधम सिंह घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे।
वह किसी तरह इंग्लैंड पहुँच गये। 13 मार्च, 1940 को ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रायल सेंट्रल सोसायटी के तत्वावधान में गोष्ठी का आयोजन हुआ। माइकेल ओडवायर के भाषण के लिए बधाई देने वालों में ऊधम सिंह भी थे। वहाँ पहुँचते ही ऊधम सिंह ने उसे गोलियां से भून डाला। इसके लिए उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। उन्होंने कहा:- माइकेल ओडवायर को मैंने मारा है क्योंकि जलियाँवाला बाग हत्याकांड के लिए वह दोषी था। इसके लिए उसे मौत की सजा मिलनी चाहिए। इसलिए मैंने उसे मारा है। उसका फल भुगतने के लिए मैं तैयार हूँ। अन्ततोगत्वा हँसता-हँसते फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए।
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